DATE - 11 FEB 2023
हड़प्पा काल में भी प्रचलित थी शिव पूजा
भारतीय कला में शव की उपस्थिति हड़प्पा काल से ही देखने को मिलती है। इतिहासकारों ने पुरातात्विक साक्ष्यों के बलबूते यह सिद्ध किया है कि सिंधु घाटी सभ्यता के युग में शव-पूजा जन-समाज में प्रचलित थी।
पुरातत्ववेताओं को मोहनजोदड़ों में एक ऐसी मुहर मिली है, जिसमें एक देवता योगी के रूप में उसी प्रकार आसी है, जिस तरह हम शिव को किसी चित्र में आसन लगाये ध्यानस्थ मुद्रा में देखते है। इस देवता के तीन सिर और सिंग है।चेहरे पर रौद्र भाव है। हाथ में कई कड़े और गले में कंठहार है। वे हाथी चित्ता, गैंडा और माहिष से घिरे हुए हैं। पशुचों से घिरे होने के कारण ही उन्हें पशुओं का स्वानी यानी कि पशुपति कहा गया है। दरअसल उनका यह स्वरूप हिंदू धर्म के उत्तरकालिन शिव से साम्य रखता है। प्रख्यात् पुरातत्ववेत्ता मार्शल ने इस हड़प्पाकालिन देवता को दृढ़तापूर्वक 'आदि शिव' माना है। अन्य इतिहासकारों ने भी मार्शल के इस मत्त को स्वीकार किया है।
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