"स्वास्थ्य ही धन है" परिचय
स्वास्थ्य ही धन है, ऐसा कहा गया है। यहां किस प्रकार के स्वास्थ्य कि चर्चा है, क्या मानसिक स्वास्थ्य का भी अच्छा होना आवश्यक है? जीवन में सेहत अच्छा होना ही सबकुछ अच्छा लगने का कारण है, यदि तन और मन से आप ठीक नहीं है, तो आपको इस दुनिया कि कोई भी चिज रिझा नहीं सकती है। आज के भाग दौड़ वाली दुनिया में मानसिक तनाव एक बहुत बड़ी समस्या बनकर उभर रही है, और इसका मुल कारण बहुत ज्यादा सोचना है, अँग्रेजी में कहें तो ओवरथिंकिग।
आज करीब दुनिया कि आधी अबादी डिप्रेशन नाम से जुझ रही है, इस बिमारी का पता लगाना बहुत मुश्किल है, क्युंकि ऐसा देखने में लगता है, कि व्यक्ति स्वस्थ्य है, मगर होता नहीं है। आखिर इस तरह के मानसिक तनाव को कैसे कम किया जाए, इस पर चर्चा होना बहुत ही जरूरी है, तो आइए, इस समस्या के उपाय के बारे में चर्चा करते है।
अपने होने को मेहसुस करना जरूरी है।
मनुष्य कई तरह के मानसिक अवस्थाओं से होकर गुजरता है, कभी वह खुश, तो कभी दुखी कई प्रकार के मानसिक संवेदनाओं से गुजरता है, औऱ उसे इस बात का पता ही नहीं होता है, कि अभी उसकी अवस्था क्या है, सबसे पहले हमें इस बात का मंथन करना चाहिए, कि हमारी मानसिक अवस्था क्या है, और उसको स्थिर करने के बाद खुद को किसी के प्रभाव में लाना चाहिए। मान लिजिए अभी आपकी मानसिक अवस्था बहुत ही तंग है, और इस दौरान आप कोई मिटींग या फिर कोई सेमिनार का हिस्सा बन जाते है, तो ऐसी स्थिति में आपका किसी के साथ झड़प हो सकता है, इसकी संभावना काफि बढ़ जाती है, क्युंकि आपको आपके मानसिक अवस्था का ज्ञान ही नहीं होता है, जिसके कारण कोई और प्रभावित हो जाता है। यही आपको आपके मानसिक अवस्था का ज्ञान होगा तो आप उससे निपटने के लिए तैयार रह सकते है, अथवा समान्य अवस्था में आने का प्रयास जरूर ही कर सकते है। मानसिक अवस्था कि अज्ञानता आपको कुछ ऐसी घटना करवा सकती है, जो आपके तनाव का बेहद खतरनाक कारण बन सकता है। इस लिए शास्त्रों में भी कहा गया है, कि आत्मज्ञान का बोध होना बेहद ही आवश्यक है।
गहरे सांस लेने कि आदत होनी बहुत जरूरी है।
जब हमारा मस्तिष्क तनाव कि अवस्था में होता है, तो सांस लेने कि अवधि में कमी करता है, अर्थात् सासं छोटी हो जाती है, और यहीं से कहानी शुरू होती है, सांस छोटी होने पर तंत्रिका तंत्र थका हुआ मेहसुस करते है, तथा मानसिक तनाव हम पर हावी हो जाता है। इसलिए इस प्रकार कि समस्या से बचने के लिए हमें हर रोज दिन में दो - तीन बार गहरे सांस लेने कि अभ्यास करना चाहिए, इससे हमारे तंत्रिका तंत्र को भरपुर ऑक्सीजन मिलता है, जिसके फलस्वरूप उनकी थकान कम हो जाती है, जो हमें अराम कि अनुभुति करवाते है, और हम तनाव मुक्त हो जाते है। गहरे सांस लेना का अभ्यास अगर जिंदगी का अंग बन जाए, तो तनाव दुर होना ही है। यह आपको चुनौतियों से अलग मेहसुस करवा सकता है।
जीवन में प्राथमिकताएं तय करना बेहद ही आवश्यक है।
रोजमर्रा के जीवन में ऐसी बहुत सी योजनाएं एवं कार्य होती है, जिनमें हम बेवजह ही उलझ कर खुद को तनाव दे देते है। हमें सर्वप्रथम इस बात को तय करना होगा कि आखिर हमारी जिम्मेदारियां क्या क्या है, और क्या नहीं है, इस पर चिंतन करना बहुत जरूरी है, क्युंकि बहुत से ऐसे प्रक्रम हो जाते है जो बिना कारण ही हमारी मानसिक तनाव के कारण बन जाते है। आपके जीवन में कार्यों का एक नियामक होना चाहिए, एक समय सिमा का होना बेहद ही जरूरी है, जो आपको ऐसे कार्यों को करने से रोकेगा, जिसमें आपका पड़ना जरूरी नहीं है, और यही आदत आपके रोजमर्रा के जीवन से तनाव को कम करेगा।
आपको ना कहने कि जरूरत पड़ सकती है, और इसकी आदत आपको जरूर डालनी चाहिए, क्युंकि कई बार ना नही कहने के कारण आप ऐसी ऐसी चिजों में आप फस जाते है, जिसका आपके उपर कोई भी उतरदायित्व ही नहीं था, और तभी यह स्थिति आपके मानसिक तनाव का कारण बन जाती है।
मल्टी टास्किंग बनने कि कोशिश मत किया किजिए, क्युंकि ऐसा करने पर ध्यान केंद्रित नहीं रहता है, और यह आपके दिमाग पर विपरित प्रभाव डाल सकता है, इसलिए एक समय में केवल एक ही कार्य को अंजाम दीजिए, यहीं आपके लिए बेहतर होगा, और ऐसी आदत आपके तनाव कम करने के लिए फायदेमंद साबित हो सकते है, क्युंकि एक समय में सिर्फ एक कार्य करने से मानसिक एकाग्रता आती है, और ध्यान केंद्रित होता है। ध्यान का केंद्रण मानसिक तनाव के दुर करने का कारक साबित होता है।
प्रकृति से जुड़ना बेहद जरूरी है।
आज कल कि आधुनिक दुनिया में हम घर कि चार दिवारी में मोबाइल एवं कंप्युटर से घिरे हुए है, हमारी पास प्रकृति से जुड़ने का समय ही नहीं बच रहा, और यह अलगाव ही तनाव के कारण को जन्म देती है। हमें ताजी हवां में रहना और बाग बगिचों में समय बिताने कि अपनी पुरानी आदतों को छोड़ना नहीं चाहिए। पतियों कि सरसराहट, चिड़ियों का चहचहाना, खुली हवाओं के साथ समय बिताना हमारी तनाव को बहुत हद तक कम करने में मदद साबित हो सकता है।
प्रकृति और मनुष्य एक दुसरे के पुरक है, प्रकृति कि गोद में जीवन व्यतीत करने कि बात शास्त्रों में भी कहा गया है, लेकिन हम स्क्रिन में खोते जा रहे है, हमारा जीवन बस मोबाइल एवं कंप्युटर तक सीमित रह गया है। बाहरों मैदानों में निकलना, दोस्तों यारों के साथ समय बिताना, बातचित करना खुली हवा में रहना बेहद जरूरी है, और आप यदि मानसिक तनाव से छुटकारा पाना चाहते है, तो प्रकृति के साथ आपको दोस्ती का हाथ बढ़ाना बेहद आवश्यक बन जाता है।
उदार होना बहुत जरूरी है।
उदारता मानव का गहना है, जिसे हम दिनप्रतिदिन भुलते जा रहे है। उदार होने से आत्मशांति एवं संतुष्टि कि प्रापति होती है, जो हमें जीवन में तनाव मुक्त कर देता है। भगवान द्वारा प्रदान किए इस जीवन कि सराहना करना और धन्यवाद रूप में जीवन बिताना आपके जीवन से तनाव गायब कर सकता है, हर पल खुद को कोसते रहना कि आपके किसी दोस्त करीब अथवा रिश्तेदार आपसे बेहतर हालात में है, तो यह आपके लिए अच्छा साबित नहीं हो सकता है, आपको इस बात कि खुशी और संतुष्टि मिलना चाहिए कि आपको जितना प्राप्त हुआ है, वहीं आपके लिए सर्वश्रेष्ठ है, तभी आप अपने और अपने परिवार के लिए एक बेहतर दुनिया का निर्माण कर सकते है। यदि आप ऐसा नहीं करते है, तो आप एक भयानक तनाव से घिर जाएंगे, जो आपको तो परेशान करेगा ही, चैन से जिने नहीं देगा, जो आपके साथ साथ आपके परिवार के मानसिक तनाव का कारण बन सकता है। ऐसी स्थिति में आप खुद तो दुखी रहते है, साथ ही साथ अपने साथ रहने वाले लोगो को भी पीड़ा और दु:ख के कारण बन जाते है।
जीवन के मुलभुत रहस्यों का समझना का प्रयास करना बेहद जरूरी है, इसको समझाने के लिए मैं आप लोगो के सामने एक उदाहरण पेश कर रहा हूं। एक पागलखाने में यह पता लगाने के लिए कि कौन सा पागल इलाज से ठीक हो गया है, रोज सुबह सबको एक एक बर्तन दिया जाता है, जिसमें बहुत सारे छेद होते है, सबको कहा जाता है, कि इसमें पानी भरकर लाना है, सभी पागल लग जाते है, पानी भरने के लिए। लेकिन उनमें से वह जिसे यह ज्ञात हो जाता है, कि इसमें पानी नहीं भरा जा सकता है, वह शिकायत लेकर आ जाते है, और तभी यह मान लिया जाता है, कि वह ठीक हो गया है। श्रीकृष्ण गीता में कहते है, कि हमारी ज्ञानेंद्रियों का तृप्त नहीं किया जा सकता, फिर सभी लोग इसको तृप्त करने के लिए लगातार संघर्षशील है, और लगे हुए है, उनमें से ही कुछ को यह पता चल जाता है, जो कि परम सत्य है, बोध हो जाता है, और वह ऐसा करना बंद कर देता है, और तभी उसे मुक्ति कि प्राप्ति हो जाती है। सिद्धार्थ गोतम बुद्ध इसलिए कहलाएं क्युंकि उन्हें इस बात का बोध हो चुका था। महावीर निग्रंथ अथवा जीन कहलाते है, जिसका अर्थ होता है, बंधनहीन अर्थात् इंद्रियों के बंधन से मुक्त। इसलिए महावीर भगवान कहलाएं।
अपने स्वाभाविक गुण को त्याग देना ही मुलत: मानसिक तनाव का कारण है, हमें आत्मज्ञान का बोध होना खत्म हो गया है, और यहीं से दुर्गति कि शुरूआत होना शुरू हो जाती है। इसलिए अपने स्वाभाव से मुंह ना मोंडे, इंद्रिंयों के बंधन से दुर रहने कि चेष्टा करें यह पुर्णत: खत्म नहीं हो सकता पर संतोष लाया जा सकता है, और उदार बना जा सकता है, और मानसिक तनाव रहित माहौल बनाया जा सकता है।
Thank you