भारत में जनगणना कि विभिन्न पहलुओं पर चर्चा, भारत कि जनसंख्या में वृद्धि के कारण एवं निवारण। जनसंख्या नियंत्रण कानुन कि आवश्यकता पर चर्चा।

श्री अक्षय भट्ट
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पोंस्ट संख्या - 01 
दिनांक - 26 जून 2024

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भारत में जनगणना 




भारत विश्व कि पुरातन सभ्ययताओं में से एक है। यहां पर कई तरह के धर्म से संबधित लोग निवास करते है, उनकी सौहार्द पुर्ण रहन सहन बहुत ही सराहनीय है। यहां के लोगों कि बोलियां एवं भाषाए कुछ ही दुरी पर बदल जाती है, मगर प्रेंम ऐसा है, कि राष्ट्र कि एकता एवं अखण्डता को हमेशा ही बरकरार रखा करते है। 

भारत का सविधान 26 जनवरी 1950 को लागु हुआ, और भारतीय संविधान में जनगणना कराने का उतरदायित्व संघ सरकार को सौपा गया है, यह भारतीय संविधान कि धारा 246 में वर्णित है, भारतीय संविधान कि सातवीं अनुसुची की क्रम संख्या 69 में भी इस बात का अंकन है।

भारत में जनगणना समिती गृह मंत्रालय के अन्तर्गत कार्य करता है, इसके प्रमुख महापंजीयक अथवा जनगणना आयुक्त होता है, यह पुरे देश में जनगणना कराने का कार्य करते है। 

ऐतिहासिक पृष्ठभुमि

ऐतिहासिक पृष्ठभुमि देखा जाए, तो भारत में सबसे पहली बार जनगणना 1872 ई में लॉर्ड मेयों के शासनकाल के दौरान करायी गयी थी, लेकिन यह जनगणना नियमित रूप में नहीं रही। बाद में 1881 ई में लॉर्ड रिपन के शासनकाल में नियमित रूप से जनगणना करायी गई। उस समय जनगणना आयुक्त WW प्लाडेन थे। आजादी के बाद पहली बार जनगणना 1952 ई में करायी गई, जिसके जनगणना आयुक्त आर ए गोपालास्वामी बने थे।

विश्व कि ऐतिहासिक पृष्ठभुमि

विश्व में सर्वप्रथम नियमित एवं व्यवस्थित जनगणना कराने का श्रेय स्वीडेन को जाता है। स्वीडेन के द्वारा यह 1749 ई. में कराया गया था। 10 वर्ष पर जनगणना करवाने कि परंपरा का शुरूआत 1790 ई. अमेरिका के द्वारा किया गया था।  इंग्लैंड में जनगणना कि शुरूआत 1801 ई. हुआ। जनगणना करवाने के मुद्दे पर इंग्लैंड पीछे रह गया था।

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 - एक नजर



अगर देश के नागरिकों का विकास करना है, और भारत को विकसति देशों कि सुची में शामिल होना है, तो इसे परिवार के अकार का सिमित करना होगा, जिसे कि परिवार का स्वास्थ्य एवं कल्याण को सुधारा जा सकता है। इस अवधारणा को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार नें 1952 में परिवार नियोजन कार्यक्रम आरंभ किया। इस परिवारा नियोजन कार्यक्रम का उद्देशय एक बेहतर पितृत्व का विकास करना था। कई वर्षों के नियोजित प्रयासों के फलस्वरूप राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 को लाया गया। यह निम्न उद्देशयों को ढांचा प्रदान करती है -

(क)    14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान करना।

(ख)    शिशु मृत्यु दर को प्रति 1000 में से 30 से भी कम करने का प्रयास।

(ग)    व्यापक रूप से टीकारोधी बिमारियों से बच्चों को छुटकारा दिलाना।

(घ)    लड़कियों कि शादी कि उम्र बढाने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास करना। 

(च)    परिवार नियोजन कार्यक्रम को एक जन केंद्रित कार्यक्रम बनाने का प्रयास करना। 

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 ई. के तहत् 2045 ई. तक भारत कि जनसंख्या में स्थिरता लाने का लक्ष्य रखा गया है, पर खेद है, कि इसके लिए कोई उचित उपाय नहीं किए जा रहे है, नवनिर्वाचित मोदी सरकार शायद इसके लिए कोई कदम उठा सकती है, इसके असार काफी बन रहे है। इस बात में कोई शक नहीं है, कि जनसंख्या पर बिना नियंत्रण के देश का विकास अच्छे नहीं किया जा सकता है। 

जनगणना से संबंधित विभिन्न बातों पर चर्चा

जनगणना से संबंधित विभिन्न बातों पर चर्चा करने से पहले मैं जनगणना से जुडें कुछ प्रमुख विषयों को समझाने का प्रयास कर रहा हूं, जो इस प्रकार से है - 

जनसंख्या घनत्व 

जनसंख्या घनत्व का संबंध किसी क्षेत्र में के एक किलोमीटर के अंदर निवास करने वाले औसत जनसंख्या से है। यह किसी देश अथवा राज्य के औसत अबादी के घनता कि व्याख्या करता है। यह अबादी कि जीवन निर्वाह के क्षेत्र का मापक है। इसकी गणना निम्न सुत्र के माध्यम से की जाती है, जो इस प्रकार से है-

जनसंख्या घनत्व     =           कुल जनसंख्या
                                   ------------------- 
                                      कुल क्षेत्रफल

लिंगानुपात

जब जनगणना में 1000 पुरूषों कि तुलना में स्त्रियों कि संख्या का अनुपात लगाया जाता है, तो इस अनुपात को लिंगानुपात कहा जाता है। इससे किसी देश अथवा राज्य में महिलायों कि स्थिति का पत्ता चलता है, और फिर स्थिति में सुधार के लिए जन जागरूकता वाले योजनाएं चलाए जाते है। इसको निकालने के लिए निम्न सुत्र का प्रयोग किया जाता है, जो इस प्रकार से है -

         लिंगानुपात   =            स्त्रियों कि संख्या 
                                       -----------------  x 1000
                                       पुरुषों कि संख्या  

शिशु लिंगानुपात (0-6 वर्ष)

जब जनगणना के दौरान किसी देश या राज्य में 0-6 वर्ष के आयु समुहों में प्रति 1000 पुरूषों कि संंख्या का उसी समुह में उसी आयु अंतराल में स्त्रियों के संख्या से तुलना किया जाता है, तो उसे शिशु लिंगानुपात (0-6 वर्ष) कहा जाता है। इसे निम्न सुत्र के प्रयोग के द्वारा ज्ञात किया जा सकता है, जो इस प्रकार से है-

शिशु लिंगानुपात(0-6)   =     स्त्रियों कि संख्या(0-6) 
                                     ------------------------- x 1000
                                      पुरुषों कि संख्या(0-6) 

साक्षरता दर

इसके बारे में बात करने से पहले यह जान लेते है, कि आखिरकर साक्षर किसे कहा जा सकता है-

(क) जब आयु सात वर्ष अथवा उससे ज्यादा हो।

(ख) जो किसी भी भाषा को समझ सकता हो, तथा उसे लिख एवं पढ सकता है। 

उपरोक्त शर्तों को पुरा करने वाला व्यक्ति साक्षर कहलाता है। सात वर्ष अथवा उससे अधिक जनसंख्या में साक्षरों के प्रतिशत को साक्षरता दर कहा जाता है। इसे निम्न सुत्र कि मदद से ज्ञात किया जा सकता है, जो इस प्रकार से है-

साक्षरता दर =                साक्षरों कि संख्या 
                    ---------------------------------------  x 100
                    7 वर्ष या अधिक आयु वाली जनसंख्या

दशकीय वृद्धि दर 

इसे DGR(Decade Growth Rate) के द्वारा सुचित किया जाता है। जनगणना के प्रत्येक 10 वर्ष पर यह पता लगाया जाता है, कि पिछले दस साल कि अपेक्षा इस साल जनसंख्या में कितनी प्रतिशत कि बढोतरी हुई है, फिर उसके संबध में अथक प्रयास तत्कालिक सरकार अथवा प्रशासनिक सत्ता के द्वारा किए जाते है। यह दस वर्षों के मध्य जनसंख्या में हुई प्रतिशत वृद्धि को दर्शाता है। इसे निम्न सुत्र के द्वारा ज्ञात किया जा सकता है, जो इस प्रकार से है -

दशकीय वृद्धि दर =  वर्तमान जनसंख्या  -  पूर्व जनसंख्या
                          -------------------------------------  x  100
                                       पूर्व जनसंख्या  

शिशु मृत्यु दर 

जनगणना के दौरान एक वर्ष पूर्व तक जन्में प्रति 1000 बच्चों में से मृत बच्चों कि संख्या को दर्शाया जाता है। अगर असान भाषा में कहा जाए तो शिशु मृत्यु दर किसी वर्षों जन्म लिए 1000 शिशुओं में से उसी वर्ष मृत शिशुओं कि संख्या को बताता है। सरकार  इस आंकड़े के द्वारा स्थिति कि जांच एवं विश्लेषण करती है, मृत्यु का कारण पता किया जाता है, तथा उसका उपाय करने के लिए विभिन्न प्रकार कि योजनाओं एवं अथक प्रयास किए जाते है। 

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर 

जनगणना 2011 के तहत् राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर तैयार किया गया है, इसमें देश के सभी नागरिकों के 15 विषयों का विवरण एकत्र करने का प्रयास किया जा रहा है, तथा इसके साथ ही सबके बायोमेट्रिक्स डाटा एकत्र करने का प्रयास भी किया जा रहा है। इसका इस्तेमाल सरकार गरीब एवं निचले तबके के लोगो के विकास हेतु योजनाओं के निर्माण में करेंगे, जिससे कि गरीबों का उत्थान हो सके। 

महा विभाजक वर्ष 

भारत में जनगणना के इतिहास में 1921 ई. को महाविभाजक वर्ष कि संज्ञा दी जाती है। 1911 से 1921 के बिच भारत कि जनगणना कि दशकीय वृद्धि ऋणात्मक हो गई थी, यह -0.31 प्रतिशत था, जिसके फलस्वरूप भारत की जनसंख्या में करीब करीब 77 लाख कि कमी आ गई थी। इसलिए 1921 ई. को महा विभाजक वर्ष कहा जाता है।  



किसी देश में जनगणना कि आवश्यकता क्युं होती है?

विश्व में मौजुद बहुत से देशों में कुछ ही ऐसे है, जो विकसित देशों कि सुची में शामिल हो पाए, कुछ देश ऐसे है जो विकसित देश बनने कि कोशिश कर रहे है, जिन्हें विकासशील देश कह कर सबोधित कर दिया जाता है। कुछ देश तो बेचारे ऐसे है, जो 21 वी सदी में भी अपनी प्राथमिक जरूरतों जैसे रोटी, कपड़ा और मकान कि जरूरत भी पुरा नहीं कर पा रहे है, इस तरह के समस्याओं से जुझने वाले देश को पिछड़ा देश बोलकर संबोधित किया जाता है। 

इस होड़ में आप विकसित देश तभी बन पाओगे जब आपके देश के नागरिक कि सभी जरूरते अच्छे से पुरा हो पाए, और ऐसा तभी होगा, जब संसाधन के उपभोग के हिसाब से ज्यादा लोग ना हो। जब लोग कि जनसंख्या मौजुद ससाधन से ज्यादा हो जाती है, तो सरकार को उसकी जरूरतों को पुरा करना मुश्किल हो जाता है। इसलिए जनसंख्या को विस्फोट कि स्थिति पैदा ना हो, इसलिए सरकार के द्वारा हरेक 10 साल पर जनगणना कराई जाती है, जिससे नागरिकों कि वर्तमान स्थिति का पत्ता चलता है, तथा सरकार विकास के लिए उचित कदम उठाती है। इसके लिए सरकार कई प्रकार कि योजनाएं लेकर आती है। 

भारत में जनंसख्या नियंत्रण कानुन क्युं चाहिए?

पिछले कुछ सालों के अंदर भारत ने जनसंख्या में रिकॉर्ड वृद्धि की है, जिससे कि हमने चीन को भी पीछे छोड़ दिया है, यह भारत के लिए अच्छे संकेत नहीं है, क्युंकि हमारे पास संसाधन सीमित है, और जब इसके उपयोक्ता ज्यादा हो जाएंगे, तो देश कि सरकार अपने नागरिकों के प्राथमिक जरूरतों को पुरा नहीं कर पाएगी, और फिर गरीबी एंव भुखमरी जैसी स्थिति पैदा होने के असार हो जाएंगे।

भारत को अपनी स्थिती सुधारने के लिए सर्वप्रथम अपनी जनसंख्या नियत्रण पर कानुन बनाने कि आवश्यकता है, क्युंकि ऐसी जनसंख्या बढती चली गई, तो भारत अपने को विकसित देशों में कभी भी खड़ा नहीं कर पाएगा। देश का विकास तभी संभव है, जब नागरिकों के जीवन शैली में बदलाव हो, प्रति वयक्ति आय में बढोतरी हो, अपराधिक मामले कम हो, साक्षरता दर 100 प्रतिशत हो जाये। यह तभी संभव है, जब संसाधन के हिसाब से नागरिक रहे। इस तथ्य को समझाने के लिए मैं आप लोगो के सामने एक उदाहरण दे रहा हूं, मान लिजीए आपके पास एक कमरा ही है, आपने शादी किया और आपकी पत्नी आपके साथ रहने लगी, कोई दिक्कत नहीं हो रहा, क्युंकि आप अपनी पत्नी के साथ अच्छे रह रहे है, कुछ वर्ष बाद आपके बच्चे होते है, वह बड़े होते है, उनकी शादी होते है, अब आप एक बात बताइए, क्या आज आप बिना दिक्कत के रह पाएंगे। तो आपका जवाब होगा, कि अब नया घर लेना होगा। मतलब अब संसाधन कि कमी हो गई, इस प्रकार अगर इसी तरह जनसंख्या बढती गई और इस पर किसी प्रकार का कोई अंकुश नहीं लगाया गया, तो पुरे देश कि यही समस्या बन जाएगी और फिर पुरे देश को इस विकट स्थिति का सामना करना पड़ जाएगा, इसलिए हमें इस मुद्दे को उठाना चाहिए।


जनसंख्या वृद्धि के कारण



आखिरकर जनसंख्या वृद्धि के क्या कारण हो सकते है, क्युं भारत कि जनसंख्या दिन-प्रतिदिन तेजी से बढती ही जा रही है, यह विचारणीय है, तो आइए, इसके कुछ कारणों पर विचार करते है - 

नागरिकों में शिक्षा कि कमी

महिलाओं को शिक्षित करना अत्यंत ही जरूरी है, अगर उनको शिक्षा से दुर रखा जाएगा, तो वह निरंतर संतानोत्पति करती रहेगी, जिसके कारण जनसंख्या में व्यापक वृद्धि हो सकता है। तत्काल में बिहार राज्य के मुख्यमंत्री श्री नीतिश कुमार के द्वारा इस बात कि विधानसभा में चर्चा कि गई थी, जिसके कारण उनकी काफी अलोचना भी हुई, विडियों बहुत वायरल हुआ था, उनके कहने का तात्पर्य सही था, पर तरीका गलत होने के कारण उसका विरोध हुआ, बाद में उनकों माफी मांगना पड़ा। वे कहना चाहते थे, कि उनके द्वारा बिहार में महिलाओं के शिक्षा और आरक्षण पर बहुत ध्यान दिया गया है, यदि महिलाओं का अच्छे से शिक्षा दी जाएंगी, तो वह बच्चे ज्यादा पैदा होने का विरोध करेगी, और अपने पति से संबंध बनाते समय विभिन्न प्रकार के गर्भधारण से बचने के उपाय कर पाएगी। 

बाल विवाह एवं बहु विवाह 

भारत में आज भी बाल विवाह एवं बहु विवाह जैसी प्रथाएं मौजुद है। राजस्थान में 35.4 प्रतिशत एवं पुरे देश भारत में 26.8 प्रतिशत बाल विवाह आज भी हो रहे है। इस प्रकार के प्रथा के कारण संतानोत्पति बहुत तेजी से होती है, यह भी जनसंख्या वृद्धि का एक प्रमुख कारण ही है। 

विवाह कि आनिवार्यता 

भारत में विवाह को धार्मिक एवं समाजिक आवश्यकता के तौर पर देखा जाता है, हमारे यहां के माता - पिता अपने संतान कि विवाह करने के कार्य को अपना उतरदायित्व समझते है। समाज में अगर किसी कि शादी नहीं होती है, तो समाज के लोग उसे हीन भाव से देखा करते है, लोग उस व्यक्ति का तिरस्कार करने लगते है, उसे एक विशेष प्रकार के नाम से पुकारा जाने लगता है। हमारे समाज में विवाह करना अनिवार्य है, अत: विवाह कि अनिवार्यता भी जनसंख्या के बढोतरी का अहम कारण है। 

संयुक्त परिवार प्रणाली 

इस प्रकार के परिवार में दादा - दादी, चाचा - चाची, बड़ा भाई, छोटा भाई सभी एक साथ घर में रहते है, परिवार के सदस्यों कि संख्या काफी होती है, संयुक्त परिवार में। इसलिए ऐसे परिवार में माता - पिता को अपने संतान के पालन पोषण के लिए ज्यादा कष्ट उठाने कि आवश्यकता नहीं होती, घर के बाकि सदस्य ही बच्चें को उठाए घुमते है। इस प्रकार माता पिता को इस बात का एहसास नहीं होता है, कि एक बच्चें को पालने में कितनी समस्याएं होती है, जिसके कारण वह लोग चार पांच बच्चे पैदा कर ही देते है। इस प्रकार हम यह जरूर कह सकते है, कि जनसंख्या में वृद्धि के प्रमुख कारणों में से एक कारण सयुक्त परिवार प्रणाली भी है।

बड़े परिवार कि इच्छा

भारत में बड़े परिवार होने कि लालसा है। सभी चाहते है, कि यदि उनका बड़ा परिवार होगा, तो समाज में लोग उनकी इज्जत करेंगे, कोई भी उसको असानी से दबा नहींं सकता है, इस लालसा के कारण भी समाज जनसंख्या सबसे समस्याओं से उलझ सा गया है। अगर हमें इस प्रकार कि अवधारणा को समाप्त करना है, तो लोगो को जितना हो सके, उतना शिक्षा दिया जाना चाहिए, सिर्फ और सिर्फ शिक्षा ही समाज के ऐसी सोच का रामबाण इलाज है।  

धार्मिक अंधविश्वास 

समाज में हिंदु धर्म में ऐसी अवधारणा है, कि यदि पुत्र नहीं होगा, और वह माता पिता को मरने के बाद अग्नि संत्कार नहीं करेगा, तो मरने के पश्चात् उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलेगी। हिंदु धर्म में सबसे बड़ा दान कन्या दान को बताया गया है, अब इन सब कारणों के वजह से एक लड़के के लिए लोग 8-10 लड़कियों को जन्म दे देते है, क्युंकि एक लडंका तो चाहिए ही क्युंकि मरने के बाद मुक्ति कैसे मिलेगी, और फिर वहीं लड़का लड़की सब बड़ा होकर अपने माता - पिता को घर से निकाल देते है, वृद्धा आश्रम में रहने को मजबुर कर देते है, और इस प्रकार माता - पिता को मरने के बाद मुक्ति कि तो बादि कि बात है, जीते जी नर्क का दर्शन तो अवश्य ही हो जाता है। एक लड़की के चाहत में चार पांच लड़के पैदा हो जाते है, क्युंकि एक लडकी तो चाहिए ही, सबसे बड़ा दान जो करना है। इस तरह कि दकियांनुसी बातों से बचिए एक ही बच्चा को अच्छी शिक्षा एवं सत्कार दीजिए, उसका भविष्य उज्जवल किजीए। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी विचारधारा कि मानमानी है, और यहीं जनसंख्या वृद्धि का कारक है, जिसे सिर्फ और सिर्फ शिक्षा देकर ही मात दिया जा सकता है। 

समाजिक सरक्षा का अभाव 

भारत में माता पिता बच्चे को बुढापे का सहारा समझते है। इसके बिना कोई भी दंपति समाजिक सुरक्षा का अभाव मेहसुस करती है, और संतान कि उत्पति करना अत्यंत ही आवश्यक समझती है। समाज में जिसका कोई संतान नहीं होता है, उसके साथ बुरा व्यवहार एवं हीन भाव से देखा जाता है, समाज के लोग कमजोर समझकर उनका तिरस्कार करने लगते है, और यहीं सब कारणों के वजह से कोई भी दंपति संतान के उत्पति को जरूरी समझते है। 

परिवार नियोजन कि प्रति उदासीनता 

नागरिकों में खासकर महिलाओं में शिक्षा का अभाव परिवार नियोजन के प्रति उदासीनता का कारण है, जितना ज्यादा हो सके महिलाओं के उत्थान के लिए सरकार को विभिन्न प्रकार के निरतंर प्रयास करना चाहिए। शिक्षा नहीं होने के कारण वह डर जाती है, कि बहुत बड़ा ऑपरेशन होगा, या फिर ज्यादा बच्चा पैदा करने से उनके शरीर पर क्या क्या प्रभाव पड़ रहे है, ऐसा होने से उनको ढेर सारी बिमारियों का सामना करना पड़ सकता है, यदि इस बात का ज्ञान हो, तो कोई भी महिला अपने शरीर कि ऐसी कि तैसी किसी पुरूष को करने नहीं देगी, औऱ गर्भ धारण से बचने के कई सारे उपाय करेगी, इसलिए शिक्षा समाज में बेहद जरूरी है। एनएफएचएस-5 के आंकड़ों के अनुसार, एनएफएचएस-4 के बाद से देश में समग्र गर्भनिरोधक प्रचलन दर (सीपीआर) 54 प्रतिशत से बढ़कर 67 प्रतिशत हो गई है।


शिशु मृत्यु दर उच्च होना 

भारत में 1990 ई. शिशु मृत्यु 34 लाख लाख प्रति वर्ष थी। शिशु मृत्यु दर उच्च होने के कारण कम उम्र में बच्चों कि मृत्यु हो जाती थी, इसलिए माता पिता एक से अधिक बच्चे पैदा करते थे कि यदि एक दो मर भी गए तो बाकि के बच्चे उनका सहारा बनकर रहेंगे। यह अवधारणा के कारण जनसंख्या में रिकॉर्ड बढोतरी हुई। वर्ष 2020 के आकड़े के मुताबिक शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 में 28 हो गई है। अगर पिछले वर्ष 2019 कि बात करें तो शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 में से 30 थी, इस प्रकार वार्षिक गिरावट 6.7 प्रतिशत का दर्ज की गई है।   


भाग्यवादिता 

कुछ समुदायों का मानना है, कि बच्चे भगवान के देन होते है, वह अपनी किस्मत लेकर पैदा होते है। इस प्रकार के सोच के कारण लोग जितना हो सकता है, अधिकतम बच्चे पैदा करने के पक्ष में होते है। ज्यादा बच्चे होने के कारण माता पिता उनके देखभाल एवं परवरिश पर ध्यान नहीं देते, उनकी अच्छी शिक्षा दीक्षा नहीं होती है, फलत: समाज को कई प्रकार के विसंगतियों से जुझना पड़ जाता है। ऐसी सोच को बदलना चाहिए, तभी समाज कि उन्नती होगी, ऐसी सोच का होना उस बच्चे के साथ अन्याय है, जिसे माता पिता के द्वारा इस संसार में पैदा कर दिया जाता है, सिर्फ इस अंधविश्वास के साथ कि बच्चे भगवान कि देन है। यह विचारणीय है, सरकार को जरूर कुछ अहम कदम उठाने कि आवश्यकता है। 

मनोरंजन के साधनो का अभाव

भारत में कि अधिकांश अबादी गांव में निवास करती है, गांव में शिक्षा औऱ मनोरंजन के साधनों कि कमी होने के कारण लोग संभोग को ही मनोरंजन का साधन मानते है, इस कारण गर्भधारण बढती है, और परिणामस्वरूप जनसंख्या में बढोतरी हो जाती है। सरकार को गावं कि शिक्षा एवं मनोरंजन के लिए ग्राम पंचायत में इसकी सुविधा कि व्यवस्था करनी होगी, तभी इस प्रकार कि समस्या से उभरा जा सकता है। 

मृत्युदर में कमी 

बेहतर स्वास्थ्य संबधी सुविधाओं के कारण आज मृत्यु दर में काफी गिरावट देखने को मिली है, अच्छे स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण जन्म दर तेजी से बढ रहे है। 1990 में शिशु मृत्यु 34 लाख थी, वही 2019 में घटकर 679000  रह गई है। जन्म दर बढने और मृत्यु दर कम होने के कारण भी जनसंख्या में बढोतरी हो रही है। 

बड़ी मात्रा में शरणार्थियों का आगमन

पिछले कुछ वर्षों में बड़ी मात्रा में शरणार्थियों का आगमन हुआ है, ये लोग बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल , श्रीलंका आदि देशों से बड़ी मात्रा में आए है, जो पुरी तरह से गैरकानुनी है, इनके आने के कारण संसाधनों का बटवारा हो जा रहा है, जनसंख्या घनत्व में वृद्धि हो रही है, और हमारे आम नागरिेक इसका परिणाम भुगत रहे है। कुछ नेताओं के द्वारा अपना वोट बैंक बढाने एवं राजनीति चमकाने के लिए इस तरह के शरणार्थियों का समर्थन किया जा रहा है, जो पूर्णत गलत है। भारत सरकार को इनको इनके देश भेजने का इंतजाम करना चाहिए। 

प्रवासी भारतीयों का आगमन

विदेशों में रहने वाले भारतीय कुछ कारणों जैसे युद्ध, अशांति आदि के कारण अपने देश वापस लौट रहे है, जिसके कारण भी जनसंख्या में बढोतरी हो रही है। 

घुसपैठ

भारत के पड़ोसी देश बाग्लांदेश, पाकिस्तान आदि देशों से बहुत से लोग गैरकानुनी तरीके से भारत में निवास कर रहे है, जिसके कारण जनसंख्या घनत्व बढ़ रही है, पशिचम बंगाल, बिहार, राजस्थान, असम और उतराखण्ड जैसे भारत के राज्य इस प्रकार के घुसपैठ वाली समस्याओं से जुझ रही है। वर्तमान में घुसपैठ एक बहुत ही विचारणीय मुद्दा है, इनके आगमन से भारत में चोरी, छिनौती, अपहरण, बलात्कार जैसी कई प्रकार के असमाजिक दोषों से सामना करना पड़ रहा है। भारत सरकार को इसके रोकथाम के लिए कठोर हथकंडे अपनाना चाहिए। देश का विकास तभी संभव है, जब अपराधिक मामले कम हो और नागरिकों का उत्थान हो। 

निष्कर्ष

हमने काफी कारणों पर विचार किया, सबमें मुझे प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से एक ही कारण विद्यमान दिखी है, और वह है, नागरिकों में शिक्षा कि कमी। सभी कारणों का केंद्र बिंदु यही है। मतलब अगर सरकार देश के नागिरकों कि शिक्षा पर अपने बजट का अधिक से अधिक राशि खर्च करें, बहुत सारे नितियों एवं योजनायों को लाकर शिक्षा में सुधार करें तो लोगो को सही एवं गलत में फर्क मेहसुस हो जाएगा, और जनसंख्या वृद्धि जैसी तमाम समस्याओं से उभरा जा सकता है। संस्कृत में एक श्वोक है, जिसका भवार्थ है, कि बिना शिक्षा के मनुष्य पशु के समान है। इसलिए शिक्षा देना अत्यंत जरूरी है। 

जनसंख्या वृद्धि जैसी समस्या का निवारण



हमने ऊपर में जनसंख्या वृद्धि के कारणों पर विस्तृत रूप से विचार किया,  अब हम इन कारणों से निपटने के उपाय पर चर्चा करेंगे, तो आइए कुछ निवारण पर बात करते है, जो इस प्रकार से है -

1.    शिक्षा का प्रसार करना 

2.  लोगो में समाजिक तौर पर जागृति लाना सही गलत का फर्क समझाना। 

3.    छोटे परिवार के महत्व एवं फायदे गिनवाना, इसका प्रचार करना। 

4.    सरकार द्वारा पंचायत, नगर पालिका, सहकारिता कानुन आदि में संशोधन करना एवं यह कानुन लागु करना कि राज्य में अथवा केंद्र में नौकरी तभी  मिलेगी जब परिवार में दो बच्चे हो। इसका पुरी कड़ाई के साथ पालन करवाना। 

5.    विवाह देरी से करना, भारत सरकार द्वारा बनाये गए लड़के(21 वर्ष) एवं लडकियों(18 वर्ष) कि शादी के न्युनतम उम्र के हिसाब से शादी करवाना और इसका कड़ाई से पालन करवाना। 

6.    परिवार कल्याण कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागु करना, अर्थात् दो से अधिक बच्चे किसी के भी नहीं होने चाहिए। यदि दो से अधिक बच्चे कोई पैदा करता है, तो उसे किसी भी प्रकार के सरकारी सेवाओं से वंचित कर देना चाहिए, वह कोई भी सरकारी योजनाओं का लाभ ना उठाएं ऐसा प्रावधान करना चाहिए और इसका सख्ती के सात पालन करना चाहिए।

7.    भारत के नागरिकों के लिए सरकार के द्वारा समाजिक सरक्षा संबधी उपाय करना चाहिए। वृद्धावस्था पेंशन, बेरोजगारी भत्ता, दुर्घटना के समय सहायता आदि कम संतान के प्रति नागरिकों को प्रेरित करती है। 

8.    ग्रामीण एवं अशिक्षित जनता के लिए सस्ते मंनोरंजन के साधनों का उपाय करना होगा, क्युंकि ये लोग संभोग को मंनोरंजन समझते है।  

9.    भारत को कड़ाई से शारदा एक्ट लागु करना चाहिए। 

10.   घुसपैठ पर प्रभावी नियंत्रण के लिए भारत सरकार को इस पर कानुन लाने कि आवश्यकता है, तथा इसे सख्ती के साथ पालन करने कि भी जरूरत है, भारत के पड़ोसी देश से लोग घुमने के बहाने आते है, और फिर वापस नहीं जाते है, इनको वापस भेजने कि प्रक्रिया पर ध्यान देते हुए इंतेजाम अत्यंत ही जरूरी है। 

11. जनसंख्या नीति 2000 में बदलाव करना चाहिए, तथा उसे कड़ाई से प्रभावी ढंग से लागु करना चाहिए। 

निष्कर्ष

यह विचारणीय मुद्दा है, भारत सरकार को इसके लिए सबसे पहले उपाय सोचना चाहिए, क्युंकि देखते-देखते हम विकसित देशों में एक नंबर पर तो नहीं आए, पर जनसंख्या में एक नंबर पर आ चुके है। अगर यही हाल रहा भारत सरकार इसको अनदेखा करती रही तो हमारा देश बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, चोरी-डकैती, खाद्दान्न कि कमी, साधनों का असमान वितरण, गरीबी, आवास की समस्या, नगरीकरण, स्वास्थ्य सेवाओं पर भार आदि समस्याओं में ही उलझ कर रह जाएगा, और विकसित भारत बनने का सपना एक सपना ही बनकर रह जाएगा। एक स्वस्थ्य एवं सुखी परिवार तभी संभव है, जब परिवार के सदस्य सिमीत रहें, यही मुलमंत्र है। 



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