ज्यादा सोचने से कौन कौन से रोग होते हैं? अधिक सोचने से क्या होता है? ज्यादा सोचने से दिमाग को कैसे रोके?

श्री अक्षय भट्ट
0
P - 369
DATE - 19 DEC 23

(toc)#title=(Table of Content)


परिचय


ह(caps)म किसी छोटी सी बात पर भी इतना सोचने लगे है, कि यह सोचना ही डिप्रेशन का कारण बन जाता है। जरूरत से ज्यादा किसी चिज को लेकर सोचना, उसके लिए परेशान रहना, रोगों का आमत्रण है, ऐसा समझ लिजिए, कि हम खासकर डिप्रेशन को दोनो हाथ जोड़कर स्वागत कर रहे है। आजकल यह समस्या बढ़ सी गई है, बेटा - बेटी अभी दुसरी क्लास में है, और माता पिता अभी से ही उनका खेलना कुदने पर पाबंदी लगा चुके है, कि दिन भर पढ़ो डॉक्टर बनना है। अगर वह ना पढ़े तो उसके भविष्य को लेकर काफी टेंसन है, कि यार यह डॉक्टर तो नहीं बन पाएगा, इस बात का टेंशन, अरे यार उसे बढ़िया से बड़ा तो हो जाने दो। किसी भी बच्चे का रिपोर्ट कार्ड कभी भी उसका भविष्य निर्धारित नहीं कर सकता है। इसलिए ना खुद तनाव में रहे ना बच्चों का तनाव में डालें।




जरूरत से ज्यादा कुछ भी वर्जित है, चाहे वो सोचना ही क्युं न हो। ऐसा करके आप महात्मा बुद्ध कभी नहीं बन सकते है, लेकिन बिमार जरूर पड़ सकते है, इसकी गारंटी मै आपको दे सकता हूं। आज कल समाज पुरी तरह से प्रतिस्पर्धाओं से भर गया है, हरेक चीज में लोग प्रतिस्पर्धा कर रहे है, और जब उनको नकामी मिलती है, तो निराश हो जाते है, कि सामने वाला आगे निकल गया, इसी से परेशान होकर ज्यादा सोचने लगते है और डिप्रेशन के शिकार हो जाते है। सोशल मिडिया का जमाना हो गया है, आजकल लोग फ्लोवर्स के पीछे भाग रहे है, दिखावेपन को अपने जीवन में उतार कर घुम रहे है, नंबर और दिखावा में इतना गुम हो गए है, कि ज्यादा कामयाब नहीं होने पर एक दुसरे के साथ जलन मेहसुस करने लगते है, और अंतिम में स्थिति वही होती है, कि लोग ज्यादा सोचने लगते है, और डिप्रेशन के शिकार हो जाते है।


ओवरथिंकिंग क्या होता है?



यह एक ऐसी आदत है, जिसमें व्यक्ति किसी घटना, स्थिति, समय, अथवा समस्या पर ज्यादा सोचने लगता है। वह व्यक्ति अपनी सोच में इतना मुग्ध हो जाता है, कि अपनी समस्या अथवा घटना को कई स्थितियों के साथ विश्लेषण करके सोचता है, यह प्रक्रिया अपने मन में बार बार दुहराते रहता है। अकेले रहने लगता है, किसी से ज्यादा बात नहीं करता। स्थिती ऐसी होती है, कि इतना सोचने के बावजुद भी वह किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाता है। वह व्यक्ति अपने मन में उस समस्या को कई दृष्टीकोण से सोचते रहता है, और डिप्रेशन का शिकार बन जाता है। इसी स्थिति को ओवरथिंकिंग कहा जाता है।


यह सत्य है, कि सोचना अच्छी बात है, एक स्वस्थ्य सोच हमेशा किसी समस्या का समाधान करता है, लेकिन यदि यही सोच हमे परेशान करने लगे, पीड़ा देने लगे, तो यही सोच डिप्रेशन का कारण भी बन जाता है, ऐसे में हम किसी भी निर्णय तक नहीं पहुंच पाते है। अत: सोचना अच्छी बात लेकिन ज्यादा सोचना अच्छी बात नहीं है।

ओवरथिंकिग के कारण 

ओवरथिंकिग के कुछ महत्वपूर्ण कारणों पर अभी हम विचार करेंगे, जो इस प्रकार से है-

1.    सम्पूर्ण होने कि चाहत -


मानव का एक आदत होती है, कि वह परफेक्ट बनना चाहता है, वह खुद को एक्सपर्ट बना देना चाहता है। इसके लिए वह सम्पूर्णता के पीछे भागने लगता है। गलतीयां नहीं करने का डर, उच्च मानकों पर बने रहने का डर उसे सोचने पर मजबुर करता है, और यह सोचने का कार्यक्रम कब जरूरत से ज्यादा हो जाता है, इसका पता उसे चलता ही नहीं लेकिन जब तक उसे इस बात का एहसास होता है, वह व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। सम्पूर्ण बनने कि चाहत, आपको कुछ भी नया करने से रोकता है, क्युंकि यह आपके अंदर गलतियां नहीं करने का डर डाल देता है, और यहीं से विकास का प्रेरण स्वभाव व्यक्ति खो देता है, और सिमीत होकर रह जाता है। 

 2.    असफलता का डर-

कहा जाता है, कि मनुष्य गलतियों का पुतला है, अर्थात् बिना गलती कि आप यह नहीं जान सकते कि सही कैसे करना है। व्यक्ति अपनी गलतियों से ही सिखाता है, और सबक लेता है। हमें अपनी गलतियों को अपना सहपाठी बनाकर उसी से सिखना चाहिए। जब व्यक्ति अपने गलतियां करने कि आदत से डरने लगता है, तो उसकी सोच में डर घर कर जाता है, जब वह अकेले में बैठता है, तो उसके बारें में सोचता रहता है, उसके भंवर में गुम जाता है, उस सोच को कई पहलुओं से तौलकर देखता है, और वह परेशान रहता है, जिसे वह कुछ भी नया नहीं कर पाता है। इसलिए हमें गलतियां करने से नहीं डरना चाहिए। गलतियां ही सही करने का गौरव प्रदान करती है और यह प्रेरणादायक है। 

3.    आत्मविश्वास कि कमी - 


यह ओवरथिंकिग का सबसे बड़ा कारण हो सकता है, आत्म विश्वास कि कमी में व्यक्ति को अपने ही द्वारा किए गये फैसले पर संदेह रहता है, वह सही निर्णय नहीं कर पाता है। व्यक्ति को इस बात का एहसास ही नहीं रहता है, कि वह ऐसा फैसला ले भी सकता है, इसी कारण अपनी पुष्टी को सही करने के लिए उस फैसले पर मंथन करते रहता है, और उसी में उलझ कर रह जाता है, परिमाणत: ओवरथिंकिग का शिकार हो जाता है।


4.    पूर्व में घटित नकारात्मक अनुभव का प्रभाव-

जब किसी व्यक्ति के साथ पूर्व में कोई ऐसी घटना होती है, जो काफी जोखिम भरा होता है, तो वह उसके सोच पर नकारात्मक प्रभाल डाल सकता है, इसको समझाने के लिए मैं आप लोगो के सामने एक उदाहरण रख रहा हूं, मान लिजिए किसी व्यक्ति के साथ कभी कोई कार कि टकराव वाली दुर्घटना हुई होती है। तो वह व्यक्ति जब भी कार कि सवारी करेगा, तो उस बात को सोचता रहेगा कि कहीं फिर से टक्कर हो गई तो क्या होगा? कभी भी इंसान यह भी सोचने लगता है, कि वह मर गया होता तो क्या होता आदि। और धीर धीरे यह सिर्फ सोच नहीं होती है, बल्कि उस व्यक्ति पर प्रभाल डालन लगती है, वह घोर चिंतित हो जाता है। अपने आपको यह समझाने लगता है, कि उसके साथ ऐसा कुछ बुरा नहीं होता, और इसी भंवर में उलझ कर रहा जाता है। राह में सब लोग उसके साथ सफर का आनंद लेते है, मगर वह उसी सोच में डुबा रहता है, कि उस दिन उसके साथ कितना बुरा हुआ। भुतकाल के बिते हुए बातों को सोच कर वह वयक्ति वर्तमान के आनंद का लुफ्त नहीं उठा पाता है। अत: ओवरथिकिंग का यह कारण बहुत ज्यादा ही प्रभावी है। 

5.    भविष्य को लेकर ज्यादा सोचना-

बहुत व्यक्तियों में ऐसी प्रवृति देखा गया है, कि वह अपने वर्तमान को लेकर संतुष्ट नहीं है, दुखी है, भविष्य को अच्छा बनाना चाहते है, और इसी काफी चितिंत है, जिसे उनका भुतकाल तो प्रभावी हुआ ही साथ में वर्तमान काल भी काफी प्रभावी हुआ, जिससे वह वर्तमान का मजा नहीं ले पाते है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें जो कुछ भी मिला है, उसमें सतुष्ट और खुश रहने कि आदत डालनी होगी, क्युंकि जहां हमारे पास इतना है, सोचो किसी के पास हमसे भी कम है। जितना है, उसमें खुश रहों और जीवन का मजा लो। हमारे वश में ना वर्तमान है, ना ही भविष्य और ना कभी बिता हुआ कल था। भविष्य के सोच हमें अन्तत: डिप्रेशन कि तरफ लेकर जाती है, जिससे कि अपना वर्तमान नष्ट हो जाता है। इंसान कि फितरत होती है, जो उसके पास नहीं होता है, उसके लिए वह पागल  होता है, वह हर मुमकिन कोशिश करता है, कि उसे पा लिया जाये लेकिन जो उसके पास पहले से मौजुद है, वह उसकी कद्र नहीं करता है, और बाद में जब वह सब भी जो उसके पास थे, छुट जाते है, तो फिर डिप्रेशन में चला जाता है। 

निष्कर्ष - 


जीवन का नाम ही संघर्ष है, छोटी बड़ी कई परेशानियां रास्ते में आएगी, हमें उसे सामना करना चाहिए, यदि हम सामना करने में असफल हो जाते है, तो उस असफलता पर हमें सोचना चाहिए, विचार करना चाहिए, अन्तत: आत्ममंथन करके यह पता लगाना चाहिए कि आखिरकर गलतियां कहां हुई जिसे कि अगली बार अगर उस प्रकार कि समस्या से सामना हो जाए, तो उसके दांत खट्टे कर दिया जाये। विफलताओं को लेकर अधिक सोचना, या फिर विफलता या गलती करने से डरना बहुत बड़ी कमी है, इसको सुधारना अति आवश्यक है, क्युंकि यहीं से ओवरथिकिंग कि शुरूआत होती है, और व्यक्ति डिप्रेशन में चला जाता है। हमेशा ध्यान रहें। 


एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

Thank you

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!