DATE - 28 DEC 23
परिचय
मैने ऐसा कुछ कभी नहीं देखा, इस आधार पर मै इस बात का खंडन नहीं कर सकता कि भुत प्रेत आदि नहीं होते है, मै एक विज्ञान का छात्र रहा हूं, तो जब तक कुछ परमाणित नहीं कर लेता मेरा भरोसा करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। फिर भी मै इतना जरूर कहूंगा, कि अगर सकारात्मक ऊर्जा है, हमारे पास तो नकारात्मक ऊर्जा भी होगी। इसमें मेरे को कोई संदेह नहीं है।
समझाने का प्रयास
मै आपलोगो से यह कहना चाहता हूं, कि अगर अध्यात्म से जोड़ कर इसे देखा जाए तो ऐसा पाया जाएगा कि सब कुछ भगवान का ही स्वरूप है, कोई बुरा नहीं कोई भुत नहीं है। सबकुछ भगवान का ही स्वरूप है। जैसे इस चिज को समझाने के लिए मैं आपलोगो के सामने विद्युत का उदाहरण देना चाहता हूं, यहीं विद्युत पंखा में जाता है, तो हमें शितलता प्रदान करता है, यहीं विद्युत जब हीटर में प्रवेश करता है, तो गर्मी देता है। लेकिन इसी विद्युत को अगर नंगे हाथो से छु लिया जाए तो जान पर संकट आ जाती है। मतलब एक ही विद्युत है, मगर इसका स्वरूप उपकरण के अनुसार बदल जाता है, उसी प्रकार भुत या प्रेत जैसा कुछ नहीं है, सब हमारे देखने का स्वरूप है, कि हम उसे किस भाव में देखते है।
अध्यात्मिक विचार
यह मेरे व्यक्तिगत विचार है, अत: इसे पूर्णत स्वीकार करना भी सही नहीं है। लेकिन अगर हमारे देखने के स्वरूप में परिवर्तन होता है, तो इसमें किसी प्रकार का कोई शक नहीं है, कि आपको भुत प्रेत जैसा कभी कुछ दिखेगा। एक बाबा तुलसीदास कि लिखी हुई चौपाई है, कि -
जाकि रही भावना जैसी,
प्रभु मुरत देखी तिन तैसी।
अर्थात् जिसकी जैसी भावना होगी, वह किसी दुसरे को उसी प्रकार से वर्णन कर पाएगा, कहने का तात्पर्य है, कि यदि हम मंदिर जाते है, और वहां मन में यह होता है,तो कि यह तो सिर्फ एक पत्थर कि मुर्ति है, तो वह मुर्ति सिर्फ और सिर्फ हमें पत्थर कि प्रतीत होगी, और यदि हम उसमें अपने अराध्य अथवा भगवान को ढ़ढते है, तो वहां उनका दर्शन जरूर होगा।
मुख्य बिंदु
अब आते है, अपने सवाल पर कि क्या भुत या प्रेत जैसा कुछ नकारात्मक शक्ति होती है? अगर होती है, तो क्या वो हमें परेशान कर सकती है, अथवा जान पर संकट हो सकती है।
मै इसका विस्तार से जवाब देना चाहता हूं, समान्य सी बात है, कि यह होगी भी तो एक नकारात्मक शक्ति जैसी ही होगी, तो नकारात्मक शक्ति आजतक किसका भला कि है, जो हमारा करेगी। इसलिए यह जान के लिए संकट हो सकती है। अब बात है, कि इनका आस्तित्व है, या नहीं । देखिए किसी भी प्रकार कि भुतों कि कहानियों कि शुरूआत डर नामक भावना से होती है, अर्थात् हम पहले डर जाते है, फिर यह मेहसुस करते है, कि शायद भुत था, हमारा डर एक भुत का काल्पनिक रूप ले लेता है, क्युंकि हमें बचपन से मां बाप के द्वारा ऐसा बताया गया है, कि खाना नहीं खाओगे तो भुत आ जाएगा, यह बात धीरे धीरे दिमाग पर घर कर जाती है, और वह एक समय बाद भुत होता है, ऐसी धारणा में बदल जाती है।
निर्गुण मत
आदि गुरू शंकराचार्य ने कहा है, कि पूरा संसार एक झुठ है, और कुछ नहीं, उनका समस्त जीवन का उपदेश इसी एक वाक्य पर अधारित था। तो एक बात बताओं जब संसार ही असत्य है, एक झुठ है, तो फिर भुत, प्रेत आदि सच कैसे हो सकते है। मेरे विचार से हमें इस प्रकार के विचारों पर सोचना चाहिए।
अगर सबको जोड़ कर देखा जाए तो सबकुछ हमारी चेतना का खेल नजर आएगा, मतलब मन ही हमें सबकुछ दिखाता है, यह सब कुछ बस एक सोच है, और कुछ नहीं है।
मगर कई सारी ऐसी कहानियां भी है, जो चिख चिख कर यह साबित करती है, कि भुत प्रेत चुड़ैल, पिशाच आदि होते है। अब सवाल यह बनता है, किसको माना जाए, और किसे ना माना जाए। बहुत सारे ऐसे धर्म स्थान है, जहां भुत प्रेत आदि से छुटकारा भी दिया जाता है।
अस्पष्ट निष्कर्ष
यहां पर पेंच फस जाता है, कि आखिरकर सच्चाई क्या है? जिस असमजंस में मैं अभी तक फसा हूं जिसका कोई ना तो ओर है, ना छोर है। अनुसंधान जारी रहेगा और मै एक दो ऐसी विश्वसनीय कहानियों के साथ फिर से आपके साथ अपना अनुभव साझा करने कि कोशिश करता रहूंगा। यदि आप मेरे विचारों से सहमत है, और मेरी बातें आप तक स्पष्ट हो रही है, तो मेरे इस पोस्ट पर अपने बहुमूल्य कॉमेंट जरूर दें, तथा मेरे ब्लॉग को फॉलो करें।
इस पोस्ट के आगे के भाग आपलोगो के सामने जल्द ही पब्लिश किए जाएगें।
Thank you